अ+ अ-
|
पास आने से पहले किताबें
परख लेती हैं
उन हाथों को, जो
उन्हें थाम सकें
उन्हें पसंद नहीं है
बगल में दबाया जाना, या फिर
लंबे से झोले के एक कोने में
पटके जाना
वे परख लेती हैं
याददाश्त को
कानों का मरोड़ा जाना
उन्हें पसंद नहीं
वे तो ये भी नहीं
चाहतीं कि
उनके भीतर कुछ रखा जाये
फूल या फिर
कोई खत,
हालाँकि रख दिया जाए
तो वे पढ़ लेती हैं
चुपके से
और तब अब सरका देती हैं
किताबों को पढ़ने से पहले
उनकी खुशबू को पीना होता है
अपने मन को बरगद बनाना होता है
और फिर थोड़ा बहुत बतियाना होता है
इतनी आसानी से नहीं खोलती
किताबें अपने आप को
सिरहाने रख कर सोना, किताबों
को हरगिज पसंद नहीं
सपने उन्हें पसंद हैं
लेकिन सपनों को
बस वे खुद चुनना चाहती हैं
किताबों को पढ़ने के लिए
इंतजार करना होता है
एक बीज के खुल जाने का
जो किताब हाथ आते ही
हमारे भीतर बोया जाता है
|
|